Thursday 15 March 2012

कुतुबमीनार कैसे बनी - शेखचिल्ली की कहानियां - Shekhchilli Stories,

एक दिन शेखजी नौकरी कि तलाश में दिल्ली आये । वे घुमते घामते कुतुबमीनार पहुंचे । उन्होंने देखा क़ुतुब मीनार के पास खड़े दो आदमी आपस में बात कर रहे थे । उनमें से एक कह रहा था -  "यार कमल है! पुराने जमाने में लोग काफी लम्बे होते थे तभी तो इतनी ऊंची कुतुबमीनार बना ली ।"
"तू गधा है ।" दुसरे ने कहा - "अबे पहले इसे लिटाकर बना लिया होगा और जब क़ुतुब मीनार बन गयी तो इसे उठाकर खड़ा कर दिया होगा ।"

पहले व्यक्ति को अपने साथी का तर्क पसंद नहीं आया । उसने उसकी बात कर विरोध किया ।
दूसरा व्यक्ति भी हार मानने वाला नहीं था । वह भी अपने तर्क पर अड़ गया ।

जनाब शेखचिल्ली एक और खड़े उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे । उन्हें उनकी मूर्खतापूर्ण बातों पर तरस आने लगा तो वह उनके करीब आकर बोले - "तुम दोनों ही महामूर्ख हो, जो इतनी सी बात पर लड़ रहे हो । इतना भी नहीं जानते, पहले कुआं खोदकर पक्का बना दिया गया था और जब कुआं बनकर तैयार हो गया तो उसे पलटकर खड़ा कर दिया गया और इस प्रकार कुतुबमीनार तैयार हो गयी ।"

शेखजी की गप्प - शेखचिल्ली की कहानियां - Shekhchilli Stories - Gapp

एक दिन सुल्तान मीर मुर्तजा ने सेनापति शेखजी को नीचा दिखने के लिए एक अजीब प्रश्न पूछा -"क्यों सेनापति जी! दुनिया में सबसे बड़ा राजा कौन है ?"
"अंग्रेजों की रानी एलिज़ाबेथ और रानी विक्टोरिया ।" शेखचिल्ली ने जवाब दिया ।
"क्या मतलब?" सुल्तान ने आश्चर्य से पूछा ।
"उनके राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता । उनका राज्य पूरब से पश्चिम तक फैला हुआ है ।"
सुनकर सुल्तान चुप हो गए।

एक दिन सुल्तान और शेखचिल्ली शिकार खेलते खेलते जंगल में चले गए ।
दोपहर के समय एक झील से कुछ दूर पेड़ों की घनी छाँव में वे आराम करने लगे ।
"घोड़ों को भी पानी दिखा आओ ।" सुल्तान ने शेखचिल्ली से कहा ।
शेखजी घोड़ों को लेकर चल दिए । 
घोड़ों को झील पर ले जाकर शेखजी ने पानी दूर से ही दिखाया और वापस ले आये । घोड़े प्यासे ही रह गए ।
प्यासे घोड़ों की और देखकर सुल्तान ने कहा - "इन्हें पानी नहीं पिलाया ?"
"नहीं"
"क्यों?"
"आपका आदेश था कि घोड़ों को पानी दिखाना है सो दिखा लाया हूँ । पिलाने का हुक्म नहीं मिला था ।"
"तुम महामूर्ख हो सेनापति शेख्चिल्लीजी बहादुर।" कहकर सुल्तान हंस पड़े और हंसकर बोले - "तुम युद्ध कौशल में जितने आगे हो, तुम्हारा व्यावहारिक ज्ञान उतना ही कम है ।"
"मेरी हाजिर जवाबी को मूर्खता समझते हैं आप, यह आपका नज़रिया है । मैं क्या कह सकता हूँ ।
"अब तो पानी पिला लाओ ।" सुल्तान ने मुस्कुराते हुए कहा ।
"पिलाने को अब कहा है ।"
"समझ का फेर है वर्ना अक्लमंद आदमी तो एक काम बताने पर दो करते हैं ।"
"एक बताने पर दो ?"
"हाँ! अगर मैंने पानी दिखने के लिए कहा था तो पानी पिला भी लाना चाहिए था ।"
"आइन्दा मैं एक काम बताने पर दो काम करूँगा ।"
"जाओ, अब पानी पिला लाओ, घोड़े प्यासे होंगे ।"
शेखजी पानी पिला लाये ।
बहुत दिनों बाद एक दिन सुल्तान कि बेगम बीमार हो गयी ।
सुल्तान के पास थे शेख्चिल्लीजी  क्योंकि उनकी सुल्तान से अच्छी मित्रता हो गयी थी । हर वक़्त वे साथ ही रहने लगे थे । सुल्तान शेखजी से बोले - "बेगम बीमार है, एक अच्छा सा वैद्य या हकीम बुलवाओ, जल्दी से भेज दो किसी को ।"
"अभी लीजिये ।" शेखजी ने कहा ।
शेखचिल्ली ने तीन नौकर बुलवाए और उन्हें अलग ले जाकर कुछ समझाया ।
नौकर चले गए ।

कुछ देर बाद वैद्यजी भी आ गए । उन्होंने नाड़ी देखनी शुरू कि ही थी कि कफ़न लेकर एक नौकर आ गया और तीसरा कब्र खोदने वालों को ले आया ।

"यह सब क्या है?" सुल्तान क्रोधित होते हुए बोले ।
"सेनापति बहादुर चिल्ली साहब के आदेश से कफ़न लाया हूँ ।" एक बोला ।
"चिल्ली बहादुर ने मुझे आदेश दिया था कि कब्र खोदने वालो बुला लाऊं । नाप लेने आये है ये मुर्दे का ।"
"कमबख्त! यहाँ शेखचिल्ली का बाप नहीं मारा है।"
"गुस्ताखी माफ़ हो हुजूर!" आगे आकर शेखचिल्ली बोले - "मेरा बाप तो बहुत पहले ही मर गया था, बेचारा स्वर्ग में है । अब रही बात बेगम साहिबा की तो जैसा आपने एक बार कहा था की हर बुद्धिमान आदमी एक काम बताने पर दो करता है, आगे तक की सोचता है । यह सोचकर हमने वैद्यजी भी बुला लिए हैं, कफ़न भी मंगवा दिया और कब्र खोदने वाले भी आ गए हैं । हमने आगे की सोची है । आपने एक काम बताया था, हमने तीन कर दिए हैं, फिर बात ये है कि खुदा न खस्ता बेगम को कुछ भी हो सकता है ?"
सुल्तान चुप हो गए ।
शेखचिल्ली के जवाब अनूठे थे ।
सुल्तान समझ गए थे कि शेखचिल्ली को हराना असंभव है ।

"शेखजी कोई गप्प सुनाओ ।" एक दिन सुल्तान ने चिल्ली से कहा ।
"अजी गप्प क्या सुनाऊं, हमारे पास सच्ची ही इतनी बातें हैं कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेतीं ।
"तो फिर सुनाओ ।"
"सुनिए ।"
शेखजी कहानी सुनाने लगे ----
"एक बार हम गर्मियों में घूमने के इरादे से मंसूरी चले गए । बर्फ में हम खूब नाचे । खूब नंगे पाँव बर्फ के मैदान में खेलते रहे, परन्तु, तभी एक दिन..."
"क्या हुआ ?"सुल्तान ने चौंककर पूछा ।
"अजी साहब हमें हिमालय ने देख लिया और हमें मरने को दौड़ पड़ा । अब आप सोचिये, कहाँ हम और कहाँ हिमालय । हम डर गए । भाग लिए नंगे पैर, लेकिन हिमालय हमारे पीछे था और हमसे आ भिड़ा । हमने उसे ऐसा पटक मारा कि वह रो पड़ा, परन्तु डर तो हम भी रहे थे । तभी हमारी निगाह मटर के दरख़्त पर पड़ गयी। हमने हिमालय को मटर के दरख़्त से बाँध दिया । उसे वहीँ बांधकर हम चल दिए पर हिमालय बड़ा हरामी निकला  । पेड़ को उखाड़कर हमारा पीछा करने लगा । जब हमें गुस्सा आया तो हमने भी हिमालय को मजा चखाना तय कर लिया । हम जहाँ थे वहीँ रुक गए हुजूर, रुक गए । तनकर खड़े हो गए । हिमालय हमारे काफी करीब आ गया । हमने दोनों हाथों से हिमालय को पकड़ा और घुमाकर उछाल दिया । पूरे साथ दिन, पांच घंटे और सैंतालीस मिनट, दस सेकंड में उत्तर कि और जा गिरा, जहाँ आज भी मारा पड़ा है ।"
सुल्तान और उनकी बेगम हँसते हँसते लोटपोट हो गए ।
"गप्प क्यों सुनाएं जब ऐसी सच्ची बातें हैं, हमारे पास । ऐसे वाकिये गुजरे हुए हैं ।" शेखचिल्ली ने मुस्कुराकर कहा ।
"बड़ी अच्छी गप्प है ।" सुल्तान खिलखिलाकर हंस पड़े ।
"तो क्या आपने मान लिया यह अच्छी गप्प है ।"
"हाँ ।"
"शुक्रिया, यही तो मैं चाहता था ।"
सुलतान मेरे के चेहरे पर हंसी उभर आई । शेखचिल्ली उनके यहाँ तब तक रहे, जब तक सुल्तान मीर मुर्तजा जीवित रहे । उनके निधन के बाद वह अपने बीवी बच्चों को लेकर अपने पुश्तैनी गाँव चले गए ।

Wednesday 14 March 2012

शेखचिल्ली रेलगाड़ी में - शेखचिल्ली की कहानियां - Shekhchilli Stories

शेखजी ने बहुत सी नौकरियां की लेकिन उनका दिल नौकरी में नहीं लगता था । एकदिन उन्होंने मुंबई जाने की सोची , नौकरी करने के लिए नहीं, बल्कि हीरो बन्ने के लिए ।


वह सोचने लगे - 'कलाकार तो वह है ही, उसे फिल्मो में मौका भी मिल सकता है। एक बार फिल्मों में आ जाये तो वह तहलका मचा सकता है । चारों और उसी के चर्चे होंगे ।'


वह मुंबई के लिए चल दिए। टिकट लिया। स्टेशन यार कड़ी हुई गाडी में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में जाकर  बैठ गए । गाडी चल दी । चिल्ली अपने डब्बे में अकेले ही थे ।


वह सोचने लगे - 'लोग यूं तो कहते हैं की रेलों  में इतनी भीड़ होती है, लेकिन यहाँ तो भीड़ है ही नहीं । पूरे डिब्बे में मैं तो अकेला बैठा हूँ ।'


उन्हें दर सा लगने लगा । इतनी बड़ी गाडी और वह अकेले । गाडी धडधडाती हुई भागी जा रही थी । रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।
वह सोच रहे थे - 'गाड़ियाँ जगह जगह रूकती हैं । कहीं कहीं तो घंटों कड़ी रहती है और एक ये है, जो रुकने का नाम ही नहीं लेती । बस भागी ही जा रही है, रुक ही नहीं रही है ।'


कई जिले पार करने के बाद जब गाडी रुकी तो बहार झांकते हुए एक नीले कपड़ो वाले रेलवे कर्मचारी को बुलाकर बोले -" ऐ भाई ! ये रेलगाड़ी है या अलादीन के चिराग का जिन्न ।"
"क्या हुआ ?"
"कमबख्त रूकती ही नहीं । खूब शोर मचाया, पर किसीने भी तो नहीं सुना ।"
"यह बस नहीं है की ड्राइवर या कंडक्टर को आवाज़ दी और कहीं भी उतर गए, यह रेलगाड़ी है मियां ।"
"रेलगाड़ी है मियां !" शेखचिल्ली बोला-"इस बात को मैं अच्छी तरह जानता हूँ ।"
"फिर क्यों पूछ रहे हो ?"
"क्या पूछ रहा हूँ ?"
"तुम तो यह भी नहीं जानते की रेलगाड़ी बिना स्टेशन आये नहीं रूकती ।"
"क्या बकते हो ! कौन बेवकूफ नहीं जानता, हम जानते हैं ।"
"जानते हो तो फिर क्यों पूछ रहे हो?"
"यह तो हमारी मर्जी है ।"
"ओह ! तो तुम मुझे मूर्ख बना रहे थे ?"
"अरे! बने बनाये को भला हम क्या बनायेंगे ?"
"ओह! नॉनसेन्स ।"
"नून तो खाओ तुम । अपन तो बिना दाल सब्जी के कभी नहीं खाते ।"
'अजीब पागल है ।' वह बडबडाता हुआ वहां से चला गया ।
शेखजी ठहाका लगाकर हंस पड़े और गाडी पुनः चल पड़ी ।

लम्बी दाढ़ी वाले बेवकूफ - शेखचिल्ली की कहानियां - Shekhchilli Stories

शेखजी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन पुस्तकें पढने का उन्हें बड़ा शौक था । एक दिन शेखजी कोई पुस्तक पढ़ रहे थे । तभी उनकी निगाह एक जगह लिखे कुछ अक्षरों पर पड़ी । लिखा था - 'लम्बी दाढ़ी वाले मूर्ख होते हैं ।'

यह वाक्य पढ़ते ही शेखजी का हाथ तुरंत अपनी दाढ़ी पर गया । पूरी एक फुट लम्बी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए शेखजी ने सोचा - 'तब तो लोग हमें भी मूर्ख समझते होंगे ।'

बस, यह बात दिमाग में आता ही फ़ौरन लगे कैंची ढूँढने । पूरा घर छान मारा , लेकिन कैंची नहीं मिली । अचानक उनकी नज़र आले में जल रहे दीपक पर पड़ी । शेखजी ने फ़ौरन दीपक उठाया और एक हाथ से दाढ़ी पकड़कर सोचा - 'जहाँ तक हाथ है वहां तक की दाढ़ी फूंक देते हैं, बाकी कल हज्जाम से मुंडवा लेंगे ।'

शेखजी ने फ़ौरन दीपक की लौ दाढ़ी में लगा दी । अगले ही पल उनकी दाढ़ी धूं-धूं कर जलने लगी । चेहरे और छाती पर तपिश लगी तो शेखजी ने दीपक एक और फेंका और लगे चीख पुकार मचने और जब चेहरा भी झुलसने लगा तो भागकर गए और बाल्टी में गर्दन तक सर डाल दिया । तब कहीं जाकर उन्हें राहत मिली, फिर सोचने लगे - 'बिलकुल सच बात लिखी है, सचमुच लम्बी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं ।'

प्यार ही खुदा है - शेखचिल्ली की कहानियां - Shekhchilli Stories

एक दिन शेखजी अपनी अम्मी के साथ बैठकर खाना खा रहे थे । अम्मी ने शेख को दूध दिया । दूध देखकर शेखजी ने अम्मी से पूछा - "अम्मी जान दूध सफ़ेद क्यूँ होता है ?"
"अल्लाह ने बनाया है बेटा।" अम्मी ने कहा ।
"सफ़ेद ही क्यों बनाया है ?"
"क्योंकि अल्लाह की दाढ़ी सफ़ेद है इसलिए ।"
"अल्लाह का रंग भी सफ़ेद है ?"
"जरुर होगा बेटे ।"
एक दिन शेखचिल्ली रात को घूमने निकल गए । नगर से बहार उन्हें एक सफ़ेद दाढ़ी वाला आदमी मिल गया । शेख को माँ की बात याद आ गयी ।
"आपकी दाढ़ी सफ़ेद क्यों है मौलवी साहब?" शेखजी ने पूछा ।
"बूढा हो गया हूँ इसलिए ।"
"बूढा होने पर मेरी दाढ़ी भी सफ़ेद हो जाएगी ?"
"हाँ, जब बूढ़े हो जाओगे ।"
"इसका मतलब तो ये है की अल्लाह भी बूढा हो गया है ।" शेखचिल्ली ने कुछ सोचते हुए पुछा ।
"कैसे?"
"उनकी भी दाढ़ी सफ़ेद है न ।" शेखजी ने कहा ।
"कौन कहता है?" मौलवी ने आश्चर्य से पुछा ।
"मेरी माँ।"
"उन्होंने देखा है ?"
"हां ।"
"फिर तो वे जरुर पैगम्बर की भेजी हुयी होंगी । मैं तो उनके दर्शन करूँगा बेटे, मुझे ले चलो ।"
"आइये ।"
बूढा मौलवी शेखचिल्ली के साथ उनके घर आया ।
"आपने खुदा को देखा है?" मौलवी साहब ने उसकी माँ से पुछा ।
"हां।"
"कहाँ है ?"


"बैठिये, पहले ये बताइए क्या खायेंगे ?"
"मैं तो खुदा को देखने आया हूँ ।"
"पहले आप आराम कीजिये, खाना खाइए ।"


मौलवी की बड़ी सेवा की गयी । उन्हें भोजन कराया गया । घर के तीनों सदस्यों के व्यव्हार और प्यार से मौलवी प्रसन्न हो उठे और बोले - "अल्लाह भंडार भरे, बड़ा नेक और तहजीब वाला घराना है । मैं इस सेवा को, इस इज्जत को भूल नहीं सकता । अब कृपा करके मुझे खुदा के दर्शन करिए ।"
"मौलवी साहब, खुदा यही मोहब्बत और सेवा का जज्बा है और शैतान है नफरत । इस घर में हिन्दू-मुस्लिम और सिख-ईसाई को एक सा माना जाता है । प्यार दिया जाता है । प्यार ही खुदा है। नफरत ही शैतान है ।" शेखचिल्ली की माँ ने कहा ।
"या अल्लाह तुम तो सचमुच खुदा की बेटी हो । हिन्दुओं में जिसे देवी कहते हैं ।"
"मैं तो एक मामूली औरत हूँ मौलवी साहब । मामूली सी औरत और यह मेरा लड़का शेखचिल्ली है, जिसे लोग मूर्ख कहते हैं ।"
"आप...आप... महँ शेखचिल्ली की माँ हैं । आपके दर्शन से तो मैंने तीर्थ कर लिए । दरअसल शेखचिल्ली जी मामूली आदमी नहीं हैं । वह तो बहुत महँ हैं, लोगों ने इन्हें पहचाना नहीं है ।"


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